बिजली बिल को समझना बहुत महत्वपूर्ण है और यह ऊर्जा बचत के लिए योजना बनाने के लिए सार्थक सिद्ध हो सकता है। हमारे बिजली का बिल बिजली की खपत के पैटर्न की अच्छी जानकारी देने के लिए काफी जानकारी है। विभिन्न घटकों की एक अच्छी समझ धन-बचत की योजना में आपकी उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस लेख में, हम बिजली के बिलों पर विभिन्न वर्गों / सूचनाओं पर चर्चा करेंगे जो आपके जानने के लिए जरूरी है।
- Tariff / Category ( टैरिफ / श्रेणी): टैरिफ और श्रेणी बिल पर लागू दर संरचना निर्धारित करते हैं। साधारणतः टैरिफ कोड एल.टी. (लो टेंशन 230 V सिंगल फेज या 400 V थ्री फेज) या एचटी (हाई टेंशन 11kV और ऊपर) से शुरू होते हैं। एल.टी. कोड आमतौर पर आवासीय, वाणिज्यिक और छोटे कार्यालयों के कनेक्शन के लिए उपयोग किया जाता है। HT कोड आमतौर पर बड़े उद्योगों और परिसरों के लिए उपयोग किए जाते हैं। बिल में लिखी श्रेणी निर्धारित करती है कि क्या कनेक्शन आवासीय, वाणिज्यिक या औद्योगिक है। अलग-अलग टैरिफ कोड के लिए अलग-अलग दरें / स्लैब लागू होते हैं और इस प्रकार यह सत्यापित करना महत्वपूर्ण है कि बिजली बिल पर सही टैरिफ कोड लागू है क्योंकि कंप्यूटर डाटा ऑपरेटर की गलती से यदि गलत श्रेणी लिखी गई है तो बिल गलत आएगा । यह जानकारी बिल हेडर पर उपलब्ध है जैसा कि नीचे दिखाया गया है:
- Type of Supply & Connected Load (Fixed charges of each State/DISCOM):कनेक्टेड (या स्वीकृत) लोड आपूर्ति है जो एक मीटर के द्वारा आपके घर मे दिया जाता है। इसकी गणना kW (या किलो-वाट) में की जाती है। यह मीटर से जुड़े उपकरणों के आधार पर आपके घर के लिए स्वीकृत की जाने वाली स्वीकृत लोड kW में है। यह आपकी वास्तविक ऊर्जा खपत नहीं है और केवल आपके बिजली बिल पर निर्धारित फिक्स्ड शुल्क को प्रभावित करता है। कनेक्टेड लोड यह भी निर्धारित करता है कि आपको सिंगल फेज या थ्री फेज कनेक्शन सैंक्शन किया जायेगा। यदि वास्तविक भार स्वीकृत भार से अधिक है, तो यह उस महीने के लिए निर्धारित फिक्स्ड शुल्कों को प्रभावित करेगा और कुछ DISCOM वास्तविक भार के ऊपर वृद्धि पर निर्धारित शुल्कों से अधिक का जुर्माना लगाता है। प्रत्येक DISCOM के पास कनेक्टिड लोड सैंक्शन करने के लिए लोड की गणना करने का एक तरीका है जो कंपनी की वेबसाइट की जांच करनी पर मिलेगी और व्यापक रूप से भिन्न होती है जैसे:माकन का निर्मित क्षेत्र
जुड़े उपकरणों के भार और उसके उपयोग करने के आधार पर मूल्यांकन
माह में खर्च यूनिट पर आधारित - Below is a screenshot from Reliance Energy bill in Mumbai:
- Units Consumed (Unit rates of each State/Discom): बिजली बिल दिखये गए यूनिट एक महीने में खपत होने वाली kWh (किलो-वाट-घंटे) की संख्या है। यदि आप 1०० वाट के लैंप को 1० घंटे के लिए इस्तेमाल करें तो 1 kWh ( एक यूनिट ) बिजली खपत के बराबर होता है। इस जानकारी की गणना लगातार एक या दो महीनों के मीटर रीडिंग के बीच अंतर के हिसाब से बिजली का बिल आपको हर माह मिलता है। यह मीटर से जुड़े सभी उपकरणों द्वारा कुल मासिक खपत है। यह वह मासिक खपत है जिसको काम करने या जयादा हो जाने से आपका बिजली का बिल प्रभावित होता है। यदि आप अपने द्वारा बिजली खपत को काम किये जाने वाले प्रयासों को जानना चाहते है तो किसी दो दिन के बीच यह रीडिंग लेकर समय समय पर देख सकते है की मेरे बिजली की खपत पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। बिजली खपत की इस जानकारी से आप अधिक बिजली खर्चे वाले उपकरण जैसे एयर कन्दतिओनेर , रूम हीटर आदि के इस्तमाल से बिजली खर्चे में प्रभाव प्राप्त कर सकते हैं और इन उपकरणों के बिजली conservation के जानकारी प्राप्त कर उसका प्रभाव देख सकते हैं।
- यदि आप अपने खर की संभावित बिजली खर्चे का अनुमान निकलने चाहते हैं तो सभी उपकरणों की सूची और उनपर लिखी वाट के साथ बनाये और अनुमानित रोजाना खर्च को भी लिख लें। उसके बाद इस लिंक पर जाकर आप बिजली खर्च का अनुमान लगा सकते हैं।
- Tariff Structure: आपके बिल पर टैरिफ संरचना की समझ रखना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही सबसे अच्छा संकेतक है कि बिल को कैसे कम किया जा सकता है। आमतौर पर आवासीय और एसएमबी वाणिज्यिक कनेक्शनों के लिए, संरचना स्लैब आधारित होती है (औद्योगिक कनेक्शनों को उच्च फ्लैट-दर पर चार्ज किया जाता है)। स्लैब संरचना के पीछे का उद्देश्य कम ऊर्जा उपयोगकर्ताओं को पुरस्कृत करना और उच्च खपत वाले लोगों को अतिरिक्त शुल्क देना है। स्लैब उन “इकाइयों उपभोग” पर आधारित हैं जिनकी हमने पहले चर्चा की थी। जैसे-जैसे इकाइयों के खर्चे में वृद्धि होती है, ऊर्जा चार्ज में भी परिवर्तन होता है और स्लैब में वृद्धि के साथ कुछ राज्यों कइ फिक्स्ड चार्जेज भी स्लैब बदलने से बदल जाते हैं। इसलिए जरूरी है की आप अपने राज्य के यूनिट एंड फिक्स्ड चार्ज की जानकारी रखें और हर माह प्राप्त बिल को चेक कर सकें। नीचे मुंबई से बिल की टैरिफ संरचना (एक फेज कनेक्शन) का एक नमूना है:
- Fuel Adjustment Charge (FAC): जैसा कि आप ऊपर टैरिफ संरचना में देख सकते हैं, प्रत्येक स्लैब में एफएसी दर लागू है। यह एक वर्ष के दौरान ईंधन की कीमत वृद्धि के कारण उपभोक्ता पर उस खर्चे को रेगुलेटरी कमीशन की इजाजत से लगाया जाता है। ज्यादातर मामलों में ईंधन कोयला है। एक अध्ययन के अनुसार, 2011 के बाद कोयले की उत्पादन दर में गिरावट आएगी, जो वर्ष 2037 तक 1990 के स्तर पर पहुंच जाएगी, और वर्ष 2047 में शिखर मूल्य का 50% तक पहुंच जाएगा। इसलिए, जब तक कि बिजली के वैकल्पिक स्रोत जैसे सोलर, हाइड्रो, आदि देश में विकसित नहीं किए जाते, तब तक FAC में वृद्धि होने की सम्भावना बानी रहेगी। इसलिए भविष्य में बिजली की लागत इन बातो पर ही निर्भर करेगी। याद रखें कि FAC शुल्क हर राज्य से भिन्न होता है और जिन राज्यों में मुख्यता हाइड्रो (जैसे केरला) से बिजली उत्पादन होता है में यह शुल्क बहुत काम लगता है । कुछ राज्यों अपने वार्षिक संशोधन के समय ही टैरिफ में इसे शामिल कर लेते हैं । कुछ राज्य (UPPCL) इसे रेगुलेटरी शुल्क भी कहते हैं ।
- Electricity Duty/Taxes (applicable taxes of each State): हर राज्य में एक विद्युत (शुल्क) अधिनियम है, जिसमें विभिन्न टैरिफ संरचना पर होने वाले कर को परिभाषित किया गया है और कोई भी उपभोक्ता अपने बिजली बिल में इसकी जांच कर सकता है। यह ध्यान दिया जाय की विद्युत् कर गस्त के द्वारा में नहीं है इस लिए हर राज्य इस कर का स्वं निर्धारण करता है। यदि आप अपने राज्य का घरेलु बिजली बिल पर लगने वाले शुल्क की जानकार चाहते है तो इस लिंक पर क्लिक करें।
विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए राजस्थान में लागू बिजली शुल्क उदाहरण के लिए नीचे दिए गए हैं:
Industrial including mining | 5 p/unit |
Agriculture
(i) In the case of metered supply (ii) In the case of non-metered supply |
1 p/unit 5% of the flat rate |
Commercial, domestic and others | 6 p/unit |
Consumption under temporary connection | 15 p/unit |
Consumption of self-generated energy of any purpose | 6 p/unit |
ऊपर उल्लिखित बिजली बिल के तत्वों को समझने से आपको अपने बिजली बिल को समझने में मदद मिल सकती है और इससे आपको बिजली की खपत कम करने की परियोजना की योजना बनाने में भी मदद मिलेगी। जिन दो चीजों को लक्षित किया जाना चाहिए वे हैं यूनिट्स का खर्चा और स्वीकृत लोड को काम करना। स्वीकृत लोड जिसपर फिक्स्ड चार्जेज लगता है औरर वास्तविक लोड आपके बिल पर लिखा होता है। यदि वास्तविक लोड स्वीकृत लोड से काफी काम हो और इस बात की आशा है भविष्य में है बढ़ेगा तो आप इसे काम करने का निवदेन करें जिससे आपके मासिक बिल में कमी आएगी। इससे करों और ईंधन अधिभार के प्रभाव में भी कमी आएगी।
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